अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप जिन्हें हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना अच्छा मित्र बताते हैं, वे मौक़ा मिलते ही भारत को शर्मसार करने से बाज़ नहीं आते। गत कुछ दिनों के भीतर ही उन्होंने दो बार भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की। एक बार प्रदूषण फैलाने के लिए चीन के बराबर का ज़िम्मेदार बताकर तो दूसरी बार कोरोना संबंधी आंकड़ों पर सवाल उठाकर। उन्होंने पिछले दिनों अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार जो बाइडन से एक चुनावी बहस के दौरान साफ़ कहा कि 'भारत ने कोविड-19 से हुई मौतों के बारे में सही आंकड़े प्रदर्शित नहीं किए हैं। आप नहीं जानते कि भारत में कितने लोग मारे गए। वे आपको सही आंकड़ें नहीं देते हैं।' ये आरोप केवल राष्ट्रपति ट्रंप के ही नहीं हैं बल्कि तमाम भारतवासियों का भी यह मानना है कि देश के तमाम निर्जन व दूरवर्ती क्षेत्रों से, जहाँ से कई कई घंटे व दिन पैदल चलकर लोग शहरों में पहुँचकर अपनी ज़रूरतें पूरी करते हैं, वहां से कोरोना की समुचित टेस्टिंग करने तथा पॉज़िटिव /नेगेटिव की अथवा कोरोना से होने वाली मौतों की सही सही रिपोर्ट ला पाना भला कहाँ संभव है। लिहाज़ा भारत में भी ख़ास तौर पर बिहार जैसे बड़े राज्य के अनेक लोगों का भी यही मानना है कि सरकार कोरोना मरीज़ों की टेस्टिंग करने व इनके सही सही राज्यव्यापी आंकड़े जुटा पाने में न तो सक्षम है न ही उसकी इस बात में कोई दिलचस्पी है। ठीक इसके उलट यही देखा जा रहा है कि महज़ राज्य में हो रहे चुनावों के चलते सरकार ने आम लोगों के दिल से कोरोना का भय समाप्त करने की ही कोशिश की है। राज्य के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी तो अपने भाषणों में कोरोना नियंत्रण करने का श्रेय लेते तथा बड़ी संख्या में भीड़ इकट्ठी होने पर प्रफुल्लित होते भी देखे व सुने गए।
कोरोना संकट, ख़ास कर आने वाली शीत ऋतु में इसके और अधिक गंभीर रूप धारण करने की चेतावनी के बावजूद इस समय लापरवाही का सबसे बड़ा केंद्र बिहार ही बना हुआ है। दुर्गा पूजा व दशहरा जैसे कार्यक्रम जो सदियों से आस्था व श्रद्धा का प्रतीक रहे हैं,सरकार व अदालतों ने इन पर राष्ट्रव्यापी नियंत्रण बनाए रखा। भारत के इतिहास में दुर्गा पूजा व दशहरा के दौरान इतना सन्नाटा कभी पसरा नहीं देखा गया। इस अवसर पर देश में करोड़ों लोगों के रोज़गार छिन गए। परन्तु नेताओं ने बिहार चुनाव को तो कोरोना संकट से इस तरह मुक्त जाना गोया बिहार की राजनीति व राजनीतिज्ञों से कोरोना भी पनाह मांगता हो। परन्तु दरअसल ऐसा नहीं है। बिहार के दो दो मंत्री गत एक माह के भीतर ही कोरोना की भेंट चढ़ चुके। केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूड़ी, इसी बिहार चुनाव के दौरान कोरोना पॉज़िटिव हो गए। उप मुख्य मंत्री सुशील मोदी भी कोरोना पॉज़िटिव हो गए हैं। ज़ाहिर है यह विशिष्ट लोग हैं इसलिए प्रशासन को इनकी फ़िक्र भी रहती है और समाचार पत्रों के माध्यम से इनके स्वास्थ्य की सूचना भी हम तक पहुँच जाती है। परन्तु नेताओं के वादों व आश्वासनों को सुनने व उनके उड़नखटोलों को देखने के लिए जो हज़ारों लाखों बेरोज़गारों की भीड़ इकट्ठी हो रही है उनमें कौन कोरोना का शिकार है और वह स्वयं किस किस को अपनी चपेट में ले रहा है,इसका हिसाब आख़िर किसके पास है ?
प्रधानमंत्री ने गत दिनों कोरोना के संबंध में जब सातवीं बार राष्ट्र संबोधन किया उस समय भी उन्होंने जनता से तो चौकसी बरतने की बात कही परन्तु नेताओं को ऐसी कोई गाइड लाइन नहीं बताई की वे अधिक भीड़ इकट्ठी न होने दें,रैली स्थल पर आने वालों की थर्मल स्कैनर लगाकर कम से कम थर्मल टेस्टिंग तो करें ? मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग तो गोया न कोई जानता है न कोई नेता इसके लिए सचेत करने की ज़रुरत समझता है। ठीक इसके उलट नेताओं का तो पूरा का पूरा 'कारोबार' ही अधिक से अधिक भीड़ पर ही आधारित है। यहाँ तक कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,मुख्य मंत्री नितीश कुमार,विपक्षी नेता राहुल गाँधी,तेजस्वी यादव या कन्हैया कुमार जैसे लोग जो लाखों की भीड़ को संबोधित करते रहे परन्तु किसी ने भी जनता को मास्क लगाने या दो गज़ की दूरी से खड़े होने की सलाह देने की ज़रुरत महसूस नहीं की। क्योंकि अधिक से अधिक और घनी से घनी भीड़ ही तो इनकी रैली की सफलता का मापदंड हैं ? हालांकि बिहार विधानसभा चुनावों की घोषणा से पूर्व कोरोना संकट के चलते अनेक विपक्षी दल फ़िलहाल चुनाव कराए जाने के पक्ष में नहीं थे। परन्तु चुनाव आयोग ने सुरक्षित चुनाव कराने के भरोसे के साथ चुनाव की घोषणा कर दी। परन्तु अब जबकि चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों की खुले आम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं और इसके अनेक प्रमाण चुनाव आयोग को मिल रहे हैं ऐसे में एक बार फिर चुनाव आयोग ने इसे गंभीरता से लेते हुए सख़्त दिशा निर्देश जारी किये हैं।
इन निर्देशों में सभा स्थल का प्रवेश व निकासी द्वार निर्धारित करना,सीमित लोगों को ही सभा स्थल में प्रवेश देना,सामाजिक दूरी बनाए रखने के मद्देनज़र मार्कर लगी जगह पर लोगों को खड़ा होने का निर्देश देना,तथा राजनैतिक दलों को प्रचार के दौरान सतर्क रहना जैसी अनेक बातें शामिल हैं। ऐसा नहीं लगता कि आयोग के इन निर्देशों का हू ब हू पालन हो सकेगा। और यदि किसी हद तक आयोग को सफलता मिली भी तो बीते दिनों जो भीड़ पूरे बिहार में इकट्ठी हो चुकी और कोरोना वायरस का आदान-प्रदान कर चुकी, उसका परिणाम क्या होगा। याद कीजिये निज़ामुद्दीन के मरकज़ में जब तब्लीग़ी जमाअत के कुछ लोग सिर्फ़ इसलिए इकट्ठे हो गए थे क्योंकि बाहर लॉक डाउन लग चुका था। और उनके पास मरकज़ के भीतर रहने के सिवा दूसरा कोई विकल्प ही नहीं था। उस घटना को देश की सरकार,स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता, भारतीय प्रोपेगंडा टी वी,दिल्ली पुलिस तथा पूर्वाग्रही सांप्रदायिक सोच रखने वाले लेखकों व पत्रकारों द्वारा किस तरह दुष्प्रचारित किया गया था? कोरोना जिहाद और कोरोना बम जैसे शब्द नफ़रत के कारख़ानों में फ़ौरन गढ़ लिए गए थे। आज बिहार चुनाव में तथा मध्य प्रदेश के उप चुनावों में भी, जन सभाओं में हो रही भयंकर लापरवाहियों के चलते यदि कोरोना विस्फ़ोट होता है तो इसका सेहरा किसके सर बाँधा जाएगा ?