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Editorial

रोगों का नाश करती है शरद पूर्णिमा - बाल मुकुन्द ओझा

October 30, 2020 06:40 AM
Jagmarg News Bureau

हिंदू पंचांग के अनुसार अक्टूबर और नवम्बर माह में कई बड़े व्रत-त्योहार पड़ रहे हैं। इनमें  शरद पूर्णिमा का पावन पर्व 30 अक्टूबर, शुक्रवार को देशभर में मनाया जाएगा। शरद ऋतु की पूर्णिमा काफी महत्वपूर्ण तिथि है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 30 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 45 मिनट से हो रहा है, जो अगले दिन 31 अक्टूबर को रात 8 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर को होगी। शरदीय नवरात्र के बाद पड़ने वाली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है।

इस पूर्णिमा को आश्विन पूर्णिमा, कोजोगार पूर्णिमा, कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, कमला पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है  हिंदू धर्म में सभी पूर्णिमा में आश्विन पूर्णिमा का विशेष महत्त्व है। शास्त्रों के अनुसार यह दिन आमजन के लिए लाभकारी है। मान्यता है शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं में रहकर पृथ्वी के काफी करीब रहता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा से निकलने वाली किरणों में सभी प्रकार के रोगों को हरने की क्षमता होती है। इसीलिए कहा गया  है कि शरद पूर्णिमा की रात आकाश से अमृत वर्षा होती है। इसी अमृत वर्षा को चखने के लिए घर घर में खुले आसमान के नीचे खीर बनायीं जाती है।  इस खीर को प्रसाद के रूप में अगली सुबह वितरित किया जाता है।

 पूर्णिमा की चांदनी में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि चंद्रमा के औषधीय गुणों से युक्त किरणें पड़ने से खीर भी अमृत के समान हो जाएगी। उसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होगा। बताया जाता है दूध में लैक्टिक नामक अम्ल पाया जाता है, जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। साथ ही चावल में स्टार्च पाया जाता है जिस वजह से ये प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है।

इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। आयुर्वेदिक औषधियों को भी अगर चंद्रमा की रोशनी में रखा जाए तो उनकी गुणवत्ता में भी इजाफा हो जाता है। देश के ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। अंतरिक्ष के समस्त ग्रहों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा चंद्रकिरणों के माध्यम से पृथ्वी पर पड़ती हैं। इस दिवस से वर्षा काल की समाप्ति तथा शीत काल की शुरुआत होती है।

शरद पूर्णिमा को भगवान कृष्ण से भी जोड़ कर देखा गया है। इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता यह है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को भगवान् श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महा रास नामक दिव्य नृत्य किया था। इस दिन धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। धार्मिक  मान्यता के मुताबिक  शरद पूर्णिमा को माता लक्ष्मी रातभर विचरण करती हैं। जो लोग माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं और अपने घर में उनको आमंत्रित करते हैं, उनके यहां वर्ष भर धन वैभव की कोई कमी नहीं रहती है।

शरद पूर्णिमा के अवसर पर देश के अनेक स्थानों पर अस्थमा पीड़ितों के लिए खास औषधि का वितरण किया जाता है। यह औषधि चंद्रकिरणों से तैयार की जाती है।

 
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