पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनावों का माहौल और खराब हुआ और अब यहां मुकाबला तृणमूल कांग्रेस बनाम भाजपा के बजाय तूणमूल कांग्रेस बनाम निर्वाचन आयोग में देखने को मिल रहा है। चोटिल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी टीम ने निर्वाचन आयोग पर निशाना साधा है। निर्वाचन आयोग ने भी पूरी प्रतिक्रिया के साथ वापस निशाना साधा है। गुरूवार को निर्वाचन आयोग ने दीदी के उन आरोपों का खंडन किया है जिनमें उन्हांेने कहा था कि बुधवार को नंदीग्राम में दीदी पर हमला इसलिए हुआ कि निर्वाचन आयोग ने भाजपा की शह पर मुख्यमंत्री की सुरक्षा से पुलिस महानिदेशक को यकायक हटा दिया था।
आयोग ने कहा यह आरोप पूर्णतः निराधार और दुर्भावनापूर्ण है तथा यह निर्वाचन आयोग के निर्माण और कार्यकरण पर ही प्रश्न उठता है जो वास्तव में भारत के संविधान की आधारशिला की उपेक्षा करने के समान है। निर्वाचन आयोग ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को हटाने के निर्णय का भी इस आधार पर बचाव किया कि यह निर्णय विशेष पर्यवेक्षक की सिफारिश पर लिया गया। आयोग ने कहा कि उसने इस घटना के बारे में राज्य के मुख्यमंत्री और विशेष पर्यवेक्षक से 48 घंटे के भीतर रिपोर्ट मांगी है।
स्पष्टतः तृणमूल कांग्रेस भाजपा के साथ चुनावी युद्ध में किसी तरह की हार के लिए आधार बना रही है और इसलिए उसने मुख्य निर्वाचन आयोग पर निशाना साधा है जैसा कि उसने 2019 के चुनावों में किया। तथापि भाजपा का कहना कि दीदी पर किया गया यह हमला सहानुभूति प्राप्त करने की चाल है क्योंकि उनके कुशासन का अंत होने वाला है। राज्य में कडा चुनावी मुकाबला है किंतु सभी पक्षों को नियमानुसार चलना होगा। राज्य में चुनाव एक माह से अधिक समय तक चलेंगे और सभी पक्षों को जनता से जुडे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए और किसी तरह से लक्षण रेखा पार करने से कोई उद्देश्य सफल नहीं होगा। निर्वाचन आयोग को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हों।
उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री
पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में विधान सभा चुनावों के लिए एक साल से कम सहय रह गया है और वहां पर मुख्यमंत्री बदलने से एक स्पष्ट संदेश दिया गया है कि यदि ऐसा नहंी किया गया तो पार्टी में तोडफोड से नहीं बचा जा सकता है। यदि पार्टी को सत्ता में बने रहना है तो फिर उसे सुधारात्मक कदम उठाने होंगे। इसीलिए बुधवार को सांसद और प्रचारक तीरथ सिंह रावत को विधायी दल का सदस्य बनाया गया और उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इससे पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को हाई कमान द्वारा त्यागपत्र देने के लिए कहा गया था।
त्रिवेन्द्र सिंह रावत का चार वर्ष का कार्यकाल उथल-पुथल भर रहा है। उनके विधायक उनके त्यागपत्र की मांग करते रहे हैं। तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाने से कई लोग हैरान हैं। तीरथ सिंह रावत सभी विधायकों और भाजपा नेताओं का विश्वास जीतने में सफल हुए और उनके नाम का प्रस्ताव पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने ही किया। राज्य में सत्ता हस्तांतरण सुचारू रूप से हुआ है और यह पार्टी तथा कार्यकर्ताओं के लिए उत्साहवर्धक है। देखना यह है कि क्या तीरथ सिंह रावत पार्टी संगठन और सरकार के बीच समन्वय बना पाते हैं क्योकि उनके पूर्ववर्ती इस मोर्चे पर विफल रहे हैं।
हरियाणा सरकार ने विश्वासमत जीता
हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के नेतृत्व में भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार बरकरार रहेगी। हालांकि कांग्रेस ने उसके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था और कांग्रेस को आशा थी कि उसने दावा किया था कि जजपा के कछ विधायक पाला बदलेंगे। कांग्रेस की इस उम्मीद का कारण यह था कि केन्द्र द्वारा किसानों के आंदोलन पर ठीक से ध्यान नहंी दिया जा रहा है किंतु ऐसा नहीं हुआ। खट्टर सरकार ने विश्वासमत जीता। अविश्वास प्रस्ताव पर छह घंटे की बहस के बाद 55 विधायकों ने इस प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया जबकि 32 विधायकों ने इसका समर्थन किया।
विधान सभा में विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने गुप्त मतदान की घोषणा की जिसे विधान सभा अध्यक्ष द्वारा स्वीकार नहंी किया गया। प्रस्ताव के विरोध में मत देने वालों में से भाजपा के 40 में से 39 विधायक और जजपा के सभी 10 विधायक थे। पांच निर्दलीय विधायकों और एचएलपी के एक विधायक ने भी अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में मत दिया। कांग्रेस केवल दो निर्दलीय उम्मदवारों का समर्थन जुटा पायी है जो पहले ही सरकार से समर्थन वापस ले चुके थे। जिन दो जेजेपी विधायकों से हुड्डा से आशा थी वे अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मत देंगे, उन्होंने ऐसा नहंी किया।
ये विधायक त्यागपत्र देने की धमकी दे रहे थे और अन्य विधायकों को भी ऐसा करने के लिए उकसा रहे थे किंतु जब मतदान का समय आया तो उन्हांेने अपने नेता दुष्यंत सिंह चौटाला के साथ अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया। खट्टर न केवल विजयी हुए अपितु उन्होंने कांग्रेस के घावों पर नमक छिडकते हुए कहा कि अविश्वास प्रस्ताव लाना कांग्रेस की पुरानी संस्कृति है। वे आनन-फानन में अविश्वास प्रस्ताव लाते हैं। उनकी पार्टी में आपस में अविश्वास के बारे में हर किसी को पता है।
जम्मू कश्मीर में उथल-पुथल
जम्ूम कश्मीर में जिला विकास परिषदों में केन्द्र के अनुरूप सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। इन परिषदों के सदस्य प्रशासन द्वारा उनके साथ किए गए व्यवहार से दुखी हैं और उन्होंने धमकी दी है कि यदि उनकी मांगों को एक सप्ताह के भीतर नहीं माना गया तो वे सामुहिक रूप से इस्तीफा देंगे। इन सदस्यों ने उनके लिए आयोजित प्रशिक्षण और कार्यशाला का बहिष्कार किया। वे अपने लिए बेहतर दर्जें और सुविधाओं की मांग कर रहे हैं। इन सदस्यों ने अपने विरोध प्रदर्शन को वापस नहीं लिया और कहा कि वे अपनी शिकायतों के निराकरण के लिए राजभवन का दरवाजा खटखटाएंगे।
उनकी शिकायत है कि सरकार जिला विकास परिषदों के अध्यक्ष पद को सचिव, पुलिस महानिरीक्षक, संभागीय आयुक्त से भी नीचे रख रही है तथा उनके पद, आने जाने तथा कर्मचारियों की व्यवस्था नहंी कर रही है। एक वक्तव्य में जिला विकास परिषदों के सदस्यों ने कहा है कि सरकार ने उन्हें जनता के समक्ष उपहास का पात्र बना दिया है जो बडी आशा के साथ उनके पास न्याय और विकास की मांग को लेकर आते हैं। 40 सदस्यीय जिला विकास फोरम, जिसमें सभी जिला विकास परिषदों के अध्यक्ष शामिल हैं, इस बात पर अडे हुए हैं।
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से अपेक्षा की जाती है कि वे उनकी शिकायतों का निराकरण करें और यदि ऐसा नहीं होता है तो फोरम ने निर्णय किया है कि वे इस मामले को प्रधानमंत्री कार्यालय के समक्ष उठाएंगे। संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन को इस बात को ध्यान में रखना होगा कि अच्छी शुरूआत का तात्पर्य आधे कार्य को पूर्ण करने के समान है और उसे त्वरित कदम उठाने होंगे। अन्यथा जिला विकास परिषदों के सफल चुनावों से उत्पन्न आशा धूमिल हो जाएगी। बदलाव की हवा बहनी चाहिए।
महाराष्ट्र बनाम केन्द्र
केन्द्र और महाराष्ट्र के बीच टकराव के चलते प्रधानमंत्री मोदी की प्रिय परियोजना पटरी से उतर गयी है। रेल मंत्री पीयूष गोयल महाराष्ट्र सरकार की आपत्तियों से हैरान है किंतु वे इस बात से खुश हैं कि गुजरात उनकी सहायता करने के लिए आगे आया और रेल मंत्रालय ने मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए पहले ही 99 प्रतिशत भूमि का अधिग्रहण कर दिया है। बुधवार को लोक सभा में उन्हांेने दोनों राज्यों के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में केवल 24 प्रतिशत भूमि का अधिग्रहण किया गया है।
प्रश्न काल में इस संबंध में पूछे गए एक प्रश्न के माध्यम से उन्होंने शिव सेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन सरकार पर यह कहते हुए निशाना साधा कि गठबंधन सरकार इस परियोजना में बाधा डाल रही है तथा महाराष्ट्र में इसके लिए जितनी भी भूमि का अधिग्रहण किया गया है वह पूर्ववर्ती सरकार के दौरान किया गया। रेल मंत्री की इस रणनीति पर शिव सेना के सांसदों ने आपत्ति की और कहा कि मंत्री सच नहीं बोल हे हैं। रेल मंत्री ने कहा कि यदि महाराष्ट्र सरकार सहयोग करे तो बुलेट टेªन परियोजना के कार्य में तेजी लायी जा सकती है। इससे एक बात और स्पष्ट हो जाती है कि इस परियोजना में विलंब के लिए रेल मंत्री के पास एक अच्छा बहाना भी है। क्या अब इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री कार्यालय को हस्तक्षेप करना पडेगा?—इंफा