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Editorial

उनकी चिंता और हमारी बेफिक्र - सुरेन्द्र कुमार

May 05, 2021 06:51 AM

वर्तमान में सबसे ज्यादा कोरोना की मार भारत झेल रहा है। दुनिया के लगभग 38 फीसदी संक्रमित आजकल भारत के अस्पतालों में अपना इलाज करा रहे हैं। गत शनिवार देश में लगभग 04 लाख कोविड मरीजों की पुष्टि हुई। जो अब तक का एक दिन का सबसे वेदनीय कोरोना आंकड़ा है। एक दिन में दुनिया के किसी भी दूसरे देश मे अबतक 04 लाख नए मरीज नहीं मिले है। जो दर्शाता है कि भारत के कोरोना हालात कितने नाजुक हैं। लेकिन प्रसन्नता की बात यह है कि देश का रिकवरी रेट इन बदत्तर हालतों मे भी बेहतर स्थिति में है।

देश के कोरोना मरीजों के स्वस्थ होने की दर इस भयावह दौर में भी अमेरिका व कई यूरोपीय देशों से बेहतर स्थिति में है। इतना ही नहीं हमारा डेथ रेट भी दुनिया के प्रमुख देशों से अभी भी कम है। दिलचस्प यह भी है कि देश मे महामारी को परास्त करने मे बुजुर्ग से लेकर नवजात शिशु तक सभी प्रमुखता से जुटे हैं। हाल ही में सूरत की 105 वर्षीय बुजुर्ग महिला ने कोरोना को पराजित करके एक नया आयाम स्थापित किया है जबकि पटना की 07 माह की मासूम ने अपने मासूमियत के बुते महामारी को हराने मे महारत हासिल की है। देश का प्रत्येक नागरिक कोरोना संक्रमण को हराने मे प्रमुखता से जुटा है।

खबर यह भी है कि महामारी के इस विचित्र दौर में देश के साथ साथ विदेशों से भी सहयोग का भरपूर भरोसा हासिल हो रहा है। मित्र राष्ट्र विदेशी होने पर भी आजकल देसी जैसा व्यवहार कर रहे हैं तथा स्वेच्छा से मदद करने को लालायित हो रहें हैं। क्या अमेरिका क्या जर्मनी क्या जापान यहाँ तो संकट के इस विचित्र दौर में रूस, फ्रांस, स्वीडन, सिंगापुर, न्यूजीलैंड, कनाडा, कुवैत, सऊदी अरब, यूएई, बग्लादेश, आयरलैंड, चीन सहित दर्जनों देश महामारी से उभारने मे भारत की खुले दिल से सहयोग कर रहे हैं।

इनमें से अधिकांश देश अब तक भारत को अनेकों जीवन रक्षक सामग्री प्रदान कर चुके हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि संकट की इस घड़ी मे अमेरिका भारत के साथ प्रमुखता से खड़ा है। क्योंकि भारत ने भी गत वर्ष अमेरिका की मदद ऐसे वक्त की थी जब प्रत्येक देश अपने हालत समेटने मे व्यस्त थे। जबकि अमेरिका तब बेहद नाजुक स्थित में था। ऐसे में अमेरिका अपने फर्ज के प्रति दृढ़ संकल्प है। अमेरिका से अब तक भारत को ऑक्सीजन सिलेंडर, रैपिड डायग्नोस्टिक किट और ऑक्सीजन नापने की मशीन सहित कई अन्य आवश्यक सामग्री हासिल हो चुकी है।

 कोरोना के नए स्ट्रेन से जूझ रहे भारत को ब्रिटेन से भी ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, वेंटिलेटर सहित अन्य चिकित्सा उपकरण प्राप्त हो चुके हैं। ब्रिटिश सरकार के प्रमुख मंत्री वोरिस जॉनसन ने कहा कि हम कोविड के खिलाफ इस जटिल लड़ाई मे भारत के साथ एक दोस्त एवं साझेदार के रूप मे खड़े है। इसी तरह जर्मन चांसलर ऐंजेला मर्केल ने एक संदेश के माध्यम से भारत को कहा है कि वे इस वैश्विक प्रकोप को परास्त करने मे भारत के साथ है। जबकि जापान के प्रधानमंत्री सुगा ने इस विकट त्रासदी से उबरने के लिए भारत को हर संभव मदद की बात कही है। मित्र राष्ट्रों के सहयोग का यह सिलसिला यही नहीं थमा।

महामारी के विरुद्ध लड़ाई मे ऑस्ट्रेलिया ने भी भारत के लिए आवश्यक ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, पीपीई कीट इत्यादि अनेकों स्वास्थ्य उपकरण प्राप्त हुएं हैं। मुश्किल की इस घड़ी में दुबई से भी भारत को ऑक्सीजन के परिवहन हेतु जरूरी टैंकर प्राप्त हुएं है। जबकि आयरलैंड और रोमानिया से देश को ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स, वेंटिलेटर सहित अनेकों उपकरण हासिल हुएं हैं। इतना ही नहीं आज चीन भी भारत को महामारी से उभारने के लिए अपने हाथ बढ़ा रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने देश के कोविड हालत पर संवेदना व्यक्त की है और कहा है कि भारत चीन से जिस तरह का सहयोग चाहेगा हम करने को तैयार है।

कोरोना के खिलाफ इस वैश्विक लड़ाई हैं दुनिया भले ही एकजुटता से भारत के साथ खड़े है। परंतु देश में अभी भी अनेकों सिरफिरे ऐसे है जिन्हें समझाने मे विगत एक वर्ष से देश विफल रहा है। यह अज्ञानता का तक़ाज़ा है या वक्त की कोई विशेष मार कहना मुश्किल है। परंतु इतना सुनिश्चित है कि ऐसे संकुचित मानसिकता से ग्रसित लोग देश के सारे किए धरें पर सहजता से पानी फेर देते हैं। देश की महिने भर की कडाई को ऐसे लोग पलभर मे धराशायी कर देते हैं। अज्ञानता से ओतप्रोत उन विशिष्ट जनों को कोविड नियमों को तोडना सहज प्रतीत होता है तथा नियमों का पालन करने वाले इन्हें ढोंगी लगते है।

ऐसे लोगों को अपने परिवार, समाज और देश की फिक्र नही बल्कि सदा अपनी ऐशप्रस्ती की चिंता सताती है। देश में ऐसे सिरफिरें भी है जिन्हें कोरोना महामारी फ्राड़ प्रतीत होती है। हत्यारे संक्रमण के ऐसे विशेष वाहक देश के प्रत्येक गाँव व शहर मे सहजता से मिल जातें हैं। ये लोग संपूर्ण लॉकडाउन मे भी सरेआम चौराहे पर घुमते है। मास्क और सेनेटाइजर का इस्तेमाल करना उन्हें ढोंग लगता है।

जबकि सामाजिक दूरी नियम का पालन करना उन्हें बेवकूफी प्रतीत होती है। देश मे अभी भी ऐसे लाखों अज्ञानी है जिन्हें महामारी का ज्ञान बांटना बेहद मुश्किल है। ऐसे लोगों को राष्ट्रीयता और समाजिकता से कोई सरोकार नहीं रहता है। ये लोग अपने निजी स्वार्थ की आपूर्ति हेतु देश को बेचने तक के लिए तैयार हो जाते हैं। कोरोना महामारी भी ऐसे विचित्र जनों को पीएम मोदी का एक बड़ा घोटाला लगता है। उन्हें स्वास्थ्य कर्मीयो की उन विशेष सेवाओं से भी कोई बास्ता नहीं जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर लाखों लोगों की जिंदगी बचाई है। उन्हें उन चिकित्सक बंधुओं का लिहाज भी नहीं जो दिनरात कोरोना मरीजों की हिफाजत के लिए अस्पतालों मे प्रमुखता से अपना फर्ज निभाया है।

अत: हम कह सकते हैं कि मित्र राष्ट्रों को भले ही भारत के स्वास्थ्य हालतों की चिंता सता रही हो पर इतना आवश्यक है कि देश मे मौजूद कुछ अपनों को भारत की सेहत की जरा भी फिक्र नही है। मित्र मुल्कों हमें उभारने मे प्रमुखता से जुटे हैं परंतु हमारे कुछ अपने देश को डुबोने में व्यस्त हैं।

 
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