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Wednesday, April 17, 2024
Editorial

हिमाचल में प्राकृतिक आपदाओं का कहर, 9 पर्यटकों की की दर्दनाक मौतें तीन घायल - नरेन्द्र भारती

July 26, 2021 07:19 AM

हिमाचल में किन्नौर से लेकर भरमौर तक प्रकृति मौत का तांडव कर रही है। दर्दनाक मौते हो रही है।प्रकृति का यह तांडव थमने का नाम नही ले रहा है। ताजा घटनाक्रम में आज 25 जुलाई को किन्नौर जिला क्ै बटसेरी के गुसां के पास चटटाने गिरने से र्प्यटकों की गाड़ी के भूस्खलन की चपेट में आने के कारण 9 पर्यटकों की दर्दनाक मौत हो गई जबकि तीन गभीर रुप से घायल हो गए। बास्पा नदी पर बना पुल भी टूट गया। चार दिन पहले भरमौर में भी भूस्खलन के कारण कार दब गई भी और एक ही परिवार के चार लोग मारे गए थे।

धर्मशाला के भागसूनाथ की घटना की स्याही अभी सूखी भी नही थी की किन्नौर में हुए भूस्खलन ने नई इबारत लिख दी है।बारिश की तबाही से अब तक दो दर्जन लोगों की जान जा चुकी है और यह कहर जारी है।गत वर्ष भी ऐसे हादसों से हिमाचल में तबाही हुई थी।गत वर्ष शिमला में भूस्खलन होने से 4 लोगों की दबकर मौत हो गई थी और कुमारसैन में दो मजदूरों की मौत हो गइ र्थी।नालागढ़ में भी मकान पर डंगा गिरने से 5 लोगों की दर्दनाक मौत हो गइ र्थी।मौतों से हर हिमाचली गमगीन है। भूस्खलन व बरसात के कहर सेे प्रदेश में अब तक काफी लोग मारे जा चुके हैं।

बारिश के खौफ से हर हिमाचली खौफजदा है।गत वर्ष लाहौल स्पीति में करीब 2000 पर्यटक फंसे थे।प्रदेश में हर जिला में लोगों के कच्चे व पक्के मकान जमींदोज हो रहे है।कुल्लु ,मण्डी व किन्नौर में भी काफी नुक्सान हुआ है।प्रकृति ने एक बार फिर अपना तांड़व मचाया है। कहीं पहाड ़दरक रहे है कहीं भूस्खलन हो रहा है। ।इस विनाशकारी प्रकृति के कहर से जनमानस खौफजदा है। कही फिर से पहाड़ का मलवा न आ जाए लोग खौफ के साए में राते काट रहे हैं। इससे पहले हिमाचल में प्रकृति के कहर से हजारों लोग मारे जा चुके हैं।

बरसात में प्रदेश में कई भीषण त्रासदियां हो चूकी है। कहीं मकानों के ढहने से बच्चे मारे गए तो कहीं सैंकडों पशुओं की दबकर मौत हो गई।दर्जनों लोग पानी में बह गए और करोडों की संपति तबाह हो गई। पहाड के मलवे की चपेट में आने से काफी जानमाल का नुक्सान हो रहा है।प्रकृति की इस विभिषिका में हजारों लोग अपंग हो गए है बच्चे अनाथ हो जाते है लाशे मलवे में दफन हो गई है।

किन्नौर में पहाड़ दरकने से लोग खौफजदा हैं।कहते है कि प्राकृतिक आपदाओं को रोक तो नहीं सकते परन्तु अपने विवेक व ज्ञान से अपने आप को सुरक्षित कर सकते है। मगर हादसों व आपदाओं से न तो लोग सबक सीखते है और न ही सरकारें सबक सीखती हैं।कुछ दिन सरकारी अमला औपचारिकता निभाता है और उसके बाद अगली घटना तक कोई कारगर उपाय नहीं किए जाते। सरकारो को इस आपदाओं पर मंथन करना चाहिए तथा शिविर लगाकर महानगरों, शहरों व गांवो के लोगों को जागरुक किया जाए। तभी तबाही से बचा सकता है।देश में प्राकृतिक आपदाओं का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है।

प्रकृति का कहर अनमोल जिन्दगीयां लील रहा है।हर राज्य में बरसात से त्रासदी हो रही है। भीषण बाढ़ के चलते आधे से ज्यादा इस बारिश़ में अब तक दर्जनों लोगों की असमय मौत हो चूकी है। हिमाचल में भी बरसात का कहर रौद्र रुप दिखा रहा है। पिछले साल बिलासपुर में भी एक पहाड़ी के दरकने से लोग बाल-बाल बच गए थे।अगर यह मलवा लोगों पर गिरा होता तो न जाने कितने घरों के चिराग बूझ जाते।इससे पहले 2017वर्ष की12 अगस्त की रात को कोटरोपी में प्रकृति ने अपना रौद्र रुप दिखाकर ऐसी खौफनाक तबाही मचाई थी की रौगटे खडे हो गए थे कोटरोपी में हुए इस हादसे ने पूरे हिमाचली समुदाय को झझकोर दिया था।

पल भर में लाशों के ढेर लग गए लाशों का ढांपने के लिए कफन कम पड़ गए थे।मौत का यह मंजर सदियों तक याद रहेगा। 12 अगस्त 2017 काली रात को कोटरोपी में प्रकृति का कहर सैकडों अनमोल जिंदगियां लील गया था।पठानकोट -मंडी नेशनल हाईवे 154 के कोटरोपी में चलती बसों पर पहाड़ गिरने से 48 लोगों की दर्दनाक मौत से हर हिमाचली गमगीन था।12 अगस्त की काली रात को प्रकृति ने ऐसा कहर मचाया की पल भर में यात्रियों को मौत की नींद सुला दिया था।यात्रियों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कोटरोपी में मौत उनका इंतजार कर रही है।

पहाड़ गिरने से चंबा से मनाली तथा मनाली से कटडा़ जा रही दो बसंे दब गई थी। सैंकडों यात्री जमीदोज हो गए। बसों में लाशे क्षत-विक्षत हो चुकी थी तथा टुकडों में तब्दील हो चुकी थी।चारों तरफ चीखो पुकार मची हुई थी लोग अपनांे को बदहवाश होकर ढूढ रहे थे मगर उनके सगे-संम्बधी चिर निंद्रा में सो चुके थे।हर तरफ लाशें दफन हो चुकी थी। प्रकृति ने ऐसी तबाही मचाई कि जीते जागते इंसान चिथडों में बदल गए तबाही का ऐसा मंजर बहुत ही भयानक था जिसे लोग ताउम्र नहीं भूल सकते आखों के सामने देखते ही देखते लोग मौत के आगोश में समा गए बसंे जमीदोज हो गई थी ।

46 शव निकाले गए थे। पहाड़ के मलवे से लोगों के आशियाने धरासाही हो गए थे गनीमत रही की किसी की जान नहीं गइ थी।अभागे यात्री अपने गतब्व पर पहुचने से पहले ही हादसे का शिकार हो गए थे।उनका सफर कोटरोपी में खत्म हो गया था। 12 अगस्त की काली रात प्रदेश वासियों को कभी नहीं भूलेगी।इस हादसे में कुल्लु की महिला ने अपने तीन बच्चे खो दिये थे वे अपने दादा के पास चंबा गए थे। देश में कभी भूकंप, तो कभी बाढ़ जैसीे आपदाएं अपना जलवा दिखाती है तो कभी बाढ़ का रौद्र रुप जिदंगियां लीलता है।

लोग प्रकृति से छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आते जब प्रकृति अपना बदला लेती है तब लोगों को होश आता समय-समय पर भीषण त्रासदियां होती रहती है मगर हम आपदाओं से कोई सबक नहीं सीखते।हर त्रासदी के बाद बचाव पर चर्चा होती है मगर कुछ दिनो बाद जब जीवन पटरी पर चलने लग जाता है तो इन बातो को भूला दिया जाता है। अगर बीती त्रासदियों से सबक सीखा जाए तो आने वाले भविष्य को सुरक्षित कर लिया जा सकता है। सरकार को चाहिए की प्रत्येक गांव से लेकर शहरो तक आपदा प्रबंधन कमेटियां गठित करनी चाहिए जिसमें डाक्टर नर्स व अन्य प्रशिक्षित स्टाफ रखना चाहिए ताकि व त्वरित कारवाई करके लोगों केा मौत के मुंह से बचा सके ।

अक्सर देखा गया है कि जब तक आपदा प्रबंधन की टीमें घटना स्थनों पर पहुचती है तब तक बची हुई सासंे उखड़ जाती है लाशों के ढेर लग जाते है।अगर समय पर आपदा ग्रस्त लोगों को प्राथमिक सहायता मिल जाए तो हजारों जिदंगियां बचाई जा सकती हैं। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सरकार को कालेजों व स्कूलों में भी माकड्रिल जैसे आयोजन करने चाहिए ताकि अचानक होने वाली आपदाओं से अपना व अन्य का बचाव किया जा सके।स्कूलो व कालेजों मे चल रहे राष्ट्रीय सेवा योजना व स्काउट एंड गाइड के स्वंयसेवियों को आपदा से निपटने के लिए पारगंत किया जाए।

अगर यही स्वयसेवी अपने घर व गांवों में लोगों को आपदा से बचने के तरीके बताए तो काफी हद तक नुक्सान को कम किया जा सकता है। सरकार को चाहिए कि आपदा से बचाव के लिए प्रत्येक विभाग के कर्मचारियों को पूर्वाभ्यास करवाया जाए ताकि समय पर काम आ सके।पुलिस व अग्शिमन के कर्मचारियों को भी समय -समय पर ऐसे आयोजन करते रहना चाहिए।अगर सभी लोग आपदा से बचाव के तरीके समझ जाएगें तो तबाही कम हो सकती है।अगर अब भी मानव ने प्रकृति पर अत्याचार बंद नहीं किया तो प्रकृति अपना बदला लेती रहेगी और मानव को सबक सीखाती रहेगी। प्रकृति के प्रकोप से बचना है तो हमें अपनी जीवन शैली बदलनी होगी,छेड़छाड़ बंद करनी होगी।

 
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