'पोंगल' दक्षिण भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस दिन लोग सूर्यदेव और इंद्र देव की पूजा करते हैं। ये त्योहार चार दिनों तक चलता है। त्योहार के पहले दिन को 'भोगी पोंगल' कहते हैं, दूसरे दिन को 'सूर्य पोंगल', तीसरे दिन को 'मट्टू पोंगल' और चौथे दिन को 'कन्नम पोंगल' कहते हैं। यह तमिल सौर कैलेंडर के अनुसार ताई महीने की शुरुआत में मनाया जाता है इसलिए तमिल लोग इसे अपना 'न्यू ईयर' मानते हैं।
पोंगल की पूजा का शुभ मुहूर्त 14 जनवरी दोपहर 02 बजकर 12 मिनट पर है।
इस त्यौहार का नाम 'पोंगल' इसलिए है क्योंकि इस दिन सूर्य देव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है वह 'पोंगल' कहलता है। तमिल भाषा में 'पोंगल' का अर्थ होता है 'उबालना'।
इसलिए इस दिन नए बर्तन में दूध, चावल, काजू, गुड़ आदि चीजों की मदद से पोंगल नाम का भोजन बनाया जाता है।
पोंगल की तुलना नवान्न से की जा सकती है जो फसल की कटाई का उत्सव होता है।
इस पर्व का इतिहास कम से कम 1000 साल पुराना है।
इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं और अपने घरों को रंगोली से सजाते हैं, घरों में काफी पकवान बनते हैं।
इस त्योंहार में गायों और बैलों की भी पूजा की जाती है।
इस दिन धान की फसल कटती है, जो कि संपन्नता को व्यक्त करती है। किसान इसी बात पर खुशी मनाते हैं और इस त्योहार के जरिए वो सूर्य देव और इंद्र देव के धन्यवाद देते हैं क्योंकि उन्हीं की कृपा से फसल तैयार हुई है और घर में संपन्नता आती है। इस दिन घरों में खास तौर पर चावल के व्यंजन बनते हैं। पर्व के तीसरे दिन शिव के प्रिय नंदी की पूजा होती है इसलिए जिनके पास बैल हैं ना वो इस दिन बैलों की पूजा करते हैं।
इस त्योहार के अंतिम दिन कन्या पूजन किया जाता है क्योंकि कन्याओं के साक्षात मां लक्ष्मी और मां काली का रूप माना जाता है। इस दिन दोनों देवियों की भी विशेष पूजा होती है। इस दिनलोग एक-दूसरे को मिठाई बांटकर मिठास बांटने की कोशिश करते हैं और एक-दूसरे की सुख की कामना करते हैं।