दुखद कि वैज्ञानिक तथ्यो के विपरीत, सरकार द्वारा किसान विरोधी व देशद्रोही जीरो बजट अवैज्ञानिक प्राकृतिक खेती का भ्रमजाल देश मे जानबूझकर फैलाया जा रहा है ! सार्वजनिक धन व संसाधनों के दुरुपयोग से केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा देश को रासायनिक खेती से बचाने के छद्मरूप उद्देश्य से, इस अव्यवहारिक खेती को बढ़ावा देने की मुहिम छेड़ रखी है ! ध्यान रखने की बात यह है कि प्राकृतिक खेती के पैरोकार कृषि वैज्ञानिक-अधिकारी नहीं, बल्कि पाखंडी बाबाओं का समूह है! जिनका कृषि विज्ञान का ज्ञान जीरो बजट खेती की तरह लगभग जीरो (शून्य) है!
ऐसे विकृत अव्यवहारिक ज्ञान को प्रोत्साहन देने से सरकार की किसान विरोधी और कृषि बर्बादी वाली नीयत व नीति पर शक होना स्वाभाविक है! क्योंकि यह तो अनपढ़ गवार भी जानते है बिना गुड डाले मीठा नहीं होगा यानी बिना समुचित पोषक तत्व खेत मे डाले अच्छी कृषि उपज नही आयेंगी? बीमारी आने पर पतंजलि वाले बाबा को भी जीवन रेखा बचाने के लिए एम्स मे रासायनिक दवा से इलाज करवाना पड़ता है, तब बीमारी व कीट प्रकोप होने पर, किसान अपनी जीवन रेखा फसल को बिना रासायनिक दवा कैसे बचा पाएंगे! जिसके लिए अनुमोदित रासायनिक दवा व खाद उचित विधि से प्रयोग करने की ज़रूरत है और भूमि की ऊर्वरा शक्ती संरक्षण के लिए हरी और जैविक खाद नियमित तौर पर मिलाना जरूरी है !
ऐतिहासिक सच यह है कि हरित क्रांती दौर (1965-70) से पहले देश प्राकृतिक खेती ही करता था जो उस समय की 50 करोड आबादी के लिए भी पूरा अनाज पैदा नही पाता था और देश की खाध्य सुरक्षा अनाज के आयात पर पूरी तरह निर्भर थी ! वर्ष-1965 मे पाकिस्तान से युद्ध के समय, जब अमेरिका ने भारत को गेंहू देने से मना किया, तब प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को राष्ट्रिय सम्बोधन मे अपील करनी पडी थी कि 'देश मे अनाज की भयंकर कमी के सभी भारतीय सप्ताह मे एक दिन उपवास रखे! जो अवैज्ञानिक प्राकृतिक खेती से भारत की खाध्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा और षडयंत्र को उजागर करता है !
अब डिजीटल युग इकिसवी सदी के 140 करोड़ जनसंख्या वाले भारत मे किसानो को हरित क्रांति दौर से पहले वाली कम उपज खेती को परोसकर जानबुझकर पथभ्रष्ट किया जा रहा है! जो किसान और देश की खाध्य सुरक्षा के लिए काल साबित होगा ! वर्ष 2022 के केंद्र व हरियाणा प्रदेश बजट मे, सरकार की स्वयं स्वीकारोक्ति कि 'प्राकृतिक खेती मे तीन वर्ष तक कम उपज होने से नुक्सान को सरकार सहन करेंगी और किसानो को मुआवजा देगी'! जो अपने आप मे सिद्ध करती है कि इस अव्यवहारिक खेती मे तेजी से कृषि उपज मे कमी आयेंगी, जैसा कि सिक्किम व श्रीलंका मे प्राकृतिक खेती अपनाने पर हुआ है ! इन्हीं तथ्यो को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा गठित कृषि विशेषज्ञय कमेटी ने वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित भी किया है कि अव्यवहारिक प्राकृतिक खेती किसान हितैषी नहीं और नाही देश हित में है, जो कम उपज से देश की खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा बनेगी!
टिकाऊ खेती है प्राकृतिक संसाधन संरक्षण का समाधान
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि कम समय मे आयोजित हरित क्रांति तकनीक द्वारा खाद्य सुरक्षा हासिल करने के लिए , देश के नीतिकारों ने पिछले 50 वर्षों मे रासायनिक खाद - बिजली - डीजल आदि सब्सिडी द्वारा भूजल व पर्यावरण बर्बादी वाली तकनीक रोपाई धान, रासायनिक खेती आदि को प्रोत्साहन दिया! जिससे कृषि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से भूमि उर्वरा शक्ति क्षीण हुई और भूजल बर्बादी व गुणवत्ता मे कमी आना जैसे गंभीर संकट पैदा हुए !
लेकिन इस बर्बादी के लिए किसान और कृषि वैज्ञानिक नही, केवल सरकार जिम्मेवार है जो सरकारी भ्रष्टाचार के चलते वर्ष-1970 के बाद, देश के गांवो व शहरो मे कुकरमुत्ते की तरह उगे नीति ज्ञानहीन कृषि रसायन व बीज व्यापार को नियंत्रित करने मे पूरी तरह विफल रही है ! जिनके चलते भारतीय बीज अधिनियम संशोधन - 2003 और कृषि रसायन अधिनियम संशोधन पिछले 20 वर्षो से संसद मे धुल फांक रहे है ! जिसकी वजह से खरबो रुपये वार्षिक का फर्जी बीज और कृषि रसायन व्यापार बाजार देश मे फल-फूल रहा है! जिसका खामियाजा पर्यावरण व कृषि भुगत रहे और किसान सरेआम लूट रहे है!
इन समस्याओं का स्थाई समाधान अव्यवहारिक जीरो बजट प्राकृतिक खेती नहीं है! बल्कि सरकार द्वारा फर्जी बीज व कृषि रसायन व्यापार पर सख्त कानूनी नियंत्रण और MSP गारंटी कानून बनाकर टिकाऊ खेती व संरक्षण कृषि तकनीक (सीधी बिजाई धान, हरी व जैविक खाद , मोटे अनाज, दलहन व तिलहन आदि फसलों की खेती) के प्रोत्साहन से ही संभव हो पायेगा! टिकाऊ खेती अपनाने की दिशा मे भ्रमित सरकार की बजाय, किसान ज्यादा जागरूक व व्यवहारिक है!
जिन्होंने वर्ष 2020 & 2021 मे बिना सरकारी प्रोत्साहन पंजाब मे 7 लाख हेक्टेयर और हरियाणा मे 3 लाख हेक्टेयर भूमि पर भूजल- संसाधन बचत वाली तर-वत्तर सीधी बिजाई धान उगाई जो इन राज्यों मे धान का एक चौथाई हिस्सा बनता है और इसी तरह रबी सीजन मे गेहूं क्षेत्र को कम करके टिकाऊ खेती सरसों की ज्यादा क्षेत्र में बुआई की! जिससे खेती मे भूजल सिंचाई व कृषि रसायन कम प्रयोग होने से भूजल व पर्यावरण संरक्षण होगा व किसान आय बढ़ेगी और देश दलहन-तिलहन में आत्मनिर्भर बनेगा