Chandigarh: भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश प्रधान Joginder Ugrahan उगराहें का नेतृत्व में Chandigarh प्रेस क्लब में Press Conference की । जिस दौरान धान की बिजाई बारे, पंजाब सरकार की तरफ से किये गए एकतरफा फ़ैसलों के ऐलान के साथ किसानों खिलाफ दर्ज केस के निवारण करने के लिए, किसान जत्थेबंदियों के नेताओं के साथ मिल बैठ कर ठोस हल ढूँढने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया।
इस मौके जत्थेबंदी के जनरल सचिव सुखदेव सिंह कोकरी कलाँ, वरिष्ठ उप प्रधान झंडा सिंह जेठूके, शिंगारा सिंह मान और रूप सिंह छीनें भी उपस्थित थे। उन कहा कि बेशक बिजली की किल्लत को ध्यान में रखते धान की बिजाई की शुरूआत के लिए पंजाब को चार जोनों में बाँटने का कदम अपने आप में तो गलत नहीं था, परन्तु इन बारे सरकार ने किसान जत्थेबंदियों के साथ मिल बैठ कर हल निकालने की जगह एकतरफा फ़ैसले लागू करने शुरू कर दिए हैं।
सरकार ने मूँग की दाल, बासमती और मक्का की सरकारी खरीद की गारंटी नहीं दी
निष्कर्ष के तौर पर समस्या उलझ गई है। जैसे कि सीधी बिजाई के लिए 1500 रुपए रिस्क भत्ता काफ़ी नहीं है, यह 10000 रुपए प्रति एकड़ होता। दूसरे नंबर पर सरकार ने मूँग की दाल, बासमती और मक्का की सरकारी खरीद की गारंटी नहीं दी। तीसरे नंबर पर पिछले क्षेत्रों वाले किसानों को बनता भत्ता नहीं दिया गया। जब कि पछेते धान का झाड़ भी घटता है ; बेचने समय पर नम की समस्या आती है ; गेहूँ बीजने में पछेत का नुकसान होता है और लेट होने के कारण पराली के घने धुओं की समस्या भी बढ़ जाती है। हमारा आज भी सुझाव है कि सरकार किसान जत्थेबंदियों के साथ मिल बैठ कर इन समस्याओं का पक्का हल निकाले।
समस्या के लंबे दाव के हल के लिए किसान नेताओं ने कहा कि धरती निचले पानी की लगातार गिर रही सतह की अति गंभीर समस्या का सारा देश किसानों सिर मढ़ना सरासर बेइन्साफ़ी है। यह समस्या इतने से जल्दबाजी के साथ हल होने वाली नहीं है। क्योंकि पहली बात तो हरे इंकलाब से पहले धान की फ़सल पंजाब की फ़सल ही नहीं थी। देसी विदेशी कॉर्पोरेट घरानों के अंधे मुनाफे की ख़ातिर फोर्ड फाऊंडेशन के तैयार किये नक्शों को वर्ल्ड बैंक और सरकारों की मिलीभगत के साथ मढ़ा गया ।
जिसके चलते फसलों में जहर छिड़कने की प्रथा को बढ़ावा दिया गया। किसानों को दो फसलों के चक्कर में बांध दिया गया। इस चक्कर को बदलने के लिए किसान दालें, मक्का, बाजरा, तेल, बीज, नरमा, फल सब्जियां आदि फसलें भी लगा सकते हैं। लेकिन उसके लिए सरकार इन फसलों का लाभकारी मूल्य देने की गारंटी ले।
किसान नेताओं ने माँग
किसान नेताओं ने माँग की है कि भूमि -जल भंडार की फिर भलाई के लिए बरसाती पानी और समुद्र की तरफ जा रही नदियों के पानी को प्रयोग में लाने और ओर वैज्ञानिक ढंग तरीके अपनाने के लिए पंजाब सरकार की तरफ से योजना बनाई की जाये और इस ख़ातिर ज़रुरी बजट के लिए धन जारी किया जाए। इस की अपेक्षा भी बड़ी बात सूबो की कुल औद्योगिक इकाईयाँ (ख़ास कर शराब फ़ैक्टरियाँ) और शहरी मलमूतर दरियाओं नहरों में फैंक रही संस्थायों द्वारा धान की फ़सल की अपेक्षा कहीं ज़्यादा मात्रा में पानी को प्रदूशित कर कर सारा साल बरबाद किया जाता है। किसान नेताओं ने माँग की है कि इस के दोषियों को सख़्त सज़ाएं देने का कानून बनाया जाये और लागू किया जाये। यह बात स्वीकृत की जाये कि भूमी -जल भंडार की सतह गिरने के दोषी किसान नहीं बल्कि हरे इंकलाब का माडल मढ़ने वाली ताकतें हैं।