- by Vinita Kohli
- Jan, 02, 2025 05:50
चंडीगढ़: पीजीआई ने किडनी ट्रांसप्लांट करवाकर घर जाने वाले मरीजों के फॉलो अप के लिए एक नई डिजिटल सुविधा शुरू की है। जिससे अब मरीजों को इलाज के फॉलो-अप के लिए समय पर मोबाइल पर संदेश (एसएमएस) मिलेगा। यह सुविधा “डिजिटल वेटिंग लिस्ट मैनेजमेंट सिस्टम” में जोड़े गए ऑटो-टेक्स्ट अलर्ट फीचर के रूप में लॉन्च की गई है। जानकारी के अनुसार मृत दाताओं से किडनी ट्रांसप्लांट करवाने वाले मरीजों को इसमें विशेष रूप से शामिल किया जाएगा
पीजीआई के अनुसार, संस्थान की कैडेवर किडनी प्रतिरोपण प्रतीक्षा सूची में वर्तमान में करीब 8,800 मरीज रजिस्टर्ड हैं। इस बड़े रोगी समूह के साथ लगातार संपर्क बनाए रखना और उन्हें समय पर फॉलो-अप के लिए बुलाना अब तक बड़ी चुनौती रहा है। मरीजों द्वारा फॉलो-अप मिस कर देने से इलाज पर प्रतिकूल असर पड़ता था। नई सुविधा से अब हर रोगी को फॉलो-अप की तिथि नजदीक आने पर स्वतः मैसेज मिलेगा, जिससे न तो मरीज अपॉइंटमेंट भूलेंगे और न ही उनका इलाज प्रभावित होगा।
नया फीचर क्यों है ज़रूरी?
नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रो. एच.एस. कोहली ने बताया कि कैडेवर डोनेशन पर आधारित किडनी प्रतिरोपण कार्यक्रम में प्रतीक्षा अवधि अक्सर लंबी होती है। ऐसे में नियमित डायलिसिस और दवाइयों की निगरानी के लिए फॉलो-अप बेहद जरूरी है। यदि रोगी समय पर नहीं आता, तो उसकी स्थिति बिगड़ सकती है। अब टेक्स्ट मैसेज अलर्ट से यह समस्या काफी हद तक हल होगी।
प्रक्रिया को डिजिटल बनाने की दिशा में कदम
पीजीआई ने पिछले वर्ष ही सॉफ्टवेयर आधारित डिजिटल प्रणाली शुरू की थी, जिसमें रजिस्ट्रेशन से लेकर दवा, डायलिसिस और फॉलो-अप तक की जानकारी दर्ज होती है। अब इस नए अलर्ट फीचर के बाद प्रक्रिया और पारदर्शी हो गई है। संस्थान ने प्रतिरोपण क्षमता भी बढ़ाई है। यूरोलॉजी विभाग को प्रतिरोपण का लाइसेंस मिलने से अब अलग-अलग इकाइयाँ प्रतिरोपण कर सकती हैं। इससे ट्रांसप्लांट की संख्या में वृद्धि हुई है। पहले जहाँ प्रतीक्षा अवधि 12 से 16 महीने तक थी, वहीं अब कई मामलों में यह घटकर 3 महीने तक रह गई है।
कम लागत में बेहतर सुविधा
पीजीआई में किडनी ट्रांसप्लांट की औसत लागत लगभग 2 लाख रुपये है। हालांकि अधिकांश मरीजों को सरकारी योजनाओं और राहत कोष से आर्थिक सहायता मिल जाती है, जिससे उन पर आर्थिक बोझ कम होता है। डायलिसिस के सहारे मरीज लंबे समय तक जीते हैं, लेकिन यह जीवन बहुत कठिन होता है। यदि समय पर ट्रांसप्लांट या फॉलो-अप न मिले तो जोखिम बढ़ जाता है। पीजीआई की यह नई प्रणाली सुनिश्चित करेगी कि कोई भी मरीज केवल अपॉइंटमेंट चूकने की वजह से इलाज से वंचित न रह जाए।