- by Vinita Kohli
- Jan, 02, 2025 05:50
चंडीगढ़: एंबुलेंस का सायरन सड़क पर ट्रैफिक को रास्ता देने में मदद करता है, लेकिन यही तीखी आवाज़ कई बार मरीजों की शारीरिक व मानसिक स्थिति पर नकारात्मक असर डाल सकती है। पंजाब यूनिवर्सिटी(पीयू) के यूआईईटी के प्रोफेसर मनोज शर्मा और पीजीआईएमईआर के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर रविंद्र खैवाल द्वारा किए गए एक महत्वपूर्ण अध्ययन में यह बात सामने आई है कि लगभग 100 डेसीबल तक पहुंचने वाली लगातार सायरन की आवाज़ मरीज की तकलीफ, तनाव, हृदय गति और ब्लड प्रैशर को बढ़ा सकती है। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए शोधकर्ताओं ने एक तकनीक विकसित की है, जिसे फीडबैक एक्टिव नॉइज़ कंट्रोल (एएनसी) और वर्चुअल सेंसिंग टेक्नोलॉजी (वीएसट) के साथ परखा गया। यह तकनीक एंबुलेंस के भीतर शोर के स्तर को काफी हद तक कम करने में सक्षम है।
अध्ययन के अनुसार, परंपरागत फीड-फॉरवर्ड एएनसी सिस्टम को एक बाहरी रेफरेंस सिग्नल की आवश्यकता होती है, जिससे उपकरण भारी, महंगे और एल्गोरिथ्म जटिल हो जाते हैं। इसके उलट, फीडबैक एएनसी सिस्टम स्वयं ‘एरर सिग्नल’ से अपना रेफरेंस तैयार कर लेता है, जिससे यह ज्यादा सरल, तेज़ और प्रभावी बन जाता है। तकनीक में जोड़ी गई वर्चुअल सेंसिंग टेक्नोलॉजी एंबुलेंस जैसी छोटी और धातु से बने क्लोज्ड स्पेस में भी ‘‘ज़ोन ऑफ़ साइलेंस’’ को बढ़ाती है। यह उन जगहों पर भी शोर कम करने में मदद करती है जहाँ माइक्रोफोन लगाना संभव नहीं होता। एंबुलेंस के भीतर धातु की दीवारों से आवाज़ गूंजकर कई गुना बढ़ जाती है, ऐसे में यह तकनीक बेहद कारगर सिद्ध हो सकती है।
शोध में पाया 23 डीबी तक शोर हुआ कम
शोध टीम ने रिकॉर्ड किए गए एंबुलेंस सायरन की आवाज़ों पर इसका परीक्षण किया और पाया कि तकनीक 23 डेसीबल तक शोर कम कर सकती है, वह भी बिना किसी अतिरिक्त साउंडप्रूफिंग सामग्री का उपयोग किए। विशेषज्ञों का कहना है कि यह परिणाम एंबुलेंस डिजाइनिंग के क्षेत्र में एक बड़ा कदम है और इससे मरीजों को सफर के दौरान अधिक राहत व शांति मिल सकती है। प्रो. रविंद्र खैवाल के अनुसार अत्यधिक शोर मरीजों में चिंता, तनाव, हृदय गति और ब्लड प्रेशर बढ़ा सकता है। नई तकनीक इन प्रभावों को कम कर एक शांत वातावरण बनाने में मदद कर सकती है, जिससे मरीज की स्थिति बिगड़ने की आशंका कम होगी।
आराम और मानसिक शांति भी जरूरी
शोधकर्ताओं ने कहा कि एंबुलेंस का मूल उद्देश्य मरीज को सुरक्षित और समय पर अस्पताल पहुंचाना है, लेकिन सफर के दौरान उसका आराम और मानसिक शांति भी उतनी ही जरूरी है। उनका मानना है कि फीडबैक एएनसी और वीएसटी भविष्य की एंबुलेंस का अहम हिस्सा बन सकती हैं। अध्ययन के नतीजे यह संभावना भी खोलते हैं कि यह तकनीक सिर्फ एंबुलेंस तक सीमित न रहकर, आईसीयू ट्रांसपोर्ट कैप्सूल, मोबाइल मेडिकल यूनिट्स और विशेष इमरजेंसी वाहनों में भी उपयोग की जा सकती है। इससे गंभीर मरीजों के स्थानांतरण के दौरान शोरजनित जोखिम कम होगा और उपचार प्रक्रिया अधिक सुरक्षित और शांतिपूर्ण बन सकेगी।