- by Vinita Kohli
- Jan, 02, 2025 05:50
चंडीगढ़ : चंडीगढ़ में स्मॉल फ्लैट्स में रहने वाले लोगों को मालिकाना हक नहीं दिया जाएगा। केंद्र सरकार ने संसद में मंगलवार को स्पष्ट कर दिया कि इन फ्लैट्स के निवासियों को मालिकाना हक नहीं दिया जाएगा। चंडीगढ़ के सांसद मनीष तिवारी द्वारा लोकसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि पुनर्वास योजना के तहत अलॉट किए गए इन मकानों में रहने वाले लोगों को मालिकाना हक देने का कोई प्रावधान नहीं है। इस जवाब से इन फ्लैट्स में रहने वाले हजारों परिवारों की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा। राय ने लोकसभा में जानकारी दी कि चंडीगढ़ में वर्ष 1980 से अब तक विभिन्न पुनर्वास योजना के तहत कुल 34965 फ्लैट अलॉट किए गए हैं। यह मकान आर्थिक तौर पर गरीब परिवारों के लोगों को लाइसेंस फीस आधार या लीजहोल्ड आधार पर अलॉट किए गए हैं। वर्तमान में ऐसा कोई नियम नहीं है, जिसके तहत इन फ्लैट्स के निवासियों को मालिकाना अधिकार दिया जा सके। केंद्र सरकार की ओर से लोग सभा में दिया गया जवाब विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई राजनीतिक दलों और नेताओं ने लंबे समय से गरीबों को इन फ्लैट्स पर मालिकाना हक देने का वादा किया था। वर्ष 2006 में चंडीगढ़ प्रशासन ने शहर की अनधिकृत कॉलोनियों और कच्ची बस्तियों में रहने वाले गरीब परिवारों को अस्थायी आवास प्रदान करने के लिए स्मॉल फ्लैट्स योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत बत्तड़, मलोया और धनास जैसे क्षेत्रों में छोटे फ्लैट्स का निर्माण किया गया था।
गौरतलब है कि भाजपा ने करीब डेढ़ साल पहले इन स्मॉल फ्लैट्स में रह रहे लोगों को जीपीए के आधार पर ही इनका मालिकाना हक उन्हें दिलाने का दावा किया था। भाजपा की घोषणा के बाद ढोल की थाप पर बधाई और मिठाई के साथ आभार जताने का सिलसिला भी जोरों से चला था। वर्ष 2023 में भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अरुण सूद ने कहा था पार्टी लंबे समय से मांग करती आ रही थी कि पुनर्वास योजना के तहत जिन झुग्गी-झोपड़ी वासियों को फ्लैट आवंटित किए गए थे और जिसमें लगभग 80 से 90% लोगों ने एक बार या इससे अधिक बार अन्य व्यक्तियों को बेच दिए थे। इन फ्लैटों के खरीदने वाले सभी लोगों को एक नई पॉलिसी लाकर मालिकाना हक दिया जाए। भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र का भी यह एक मुद्दा था। अरुण सूद ने कहा था कि प्रशासक की ओर से भाजपा की मांग को स्वीकार करते हुए शहर के उपायुक्त को यह आदेश दिए कि दो महीने के अंदर इन मकानों का सर्वे कर जो भी व्यक्ति जीपीए के आधार पर इन मकानों के मालिकना हक का दावा करता है उसे एक नीति द्वारा इस मकान का मालिकाना हक दिया जाए।
प्रशासन ने करवाया था स्मॉल फ्लैट्स का सर्वे
यूटी प्रशासन की ओर से स्मॉल फ्लैट्स का सर्वे भी करवाया गया था। सर्वे रिपोर्ट में पता चला था कि इन मकानों में 80 फीसदी ऐसे लोग हैं जो असल अलॉटी नहीं है। इनमें से कुछ लोगों के पास पावर ऑफ अटॉर्नी से मकान खरीदे गए हैं। सर्वे में यह भी पता चला था कि कई लोगों के पास कोई भी दस्तावेज नहीं है। प्रशासन ने सर्वें के दौरान प्रेस नोट जारी कर कहा था कि सर्वे का मतलब मालिकाना हक मिल जाना नहीं है। कई लोगों ने सर्वे के दौरान ही खरीद फरोस्त के दस्तावेज तैयार किए थे। जबकि प्रशासन पहले से ही स्पष्ट कर चुका है कि पुराने दस्तावेज ही मान्य किए जाएंगे। अभी बनाए गए किसी भी दस्तावेज को मान्य नहीं किया जाएगा। अलॉटमेंट के बाद पहली बार इस तरह का सर्वे किया गया था। संपदा विभाग के अनुसार इस सर्वे का उद्देश्य पुनर्वास कालोनियों में संपत्ति के स्वामित्व रिकार्ड में सटीकता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना था।
कई सालों से लगातार चर्चा में है मालिकाना हक का मुद्दा
मालिकाना हक यह मुद्दा पिछले कुछ सालों से लगातार चर्चा में रहा है। पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान भी यह मुद्दा उठा था। 2022 में चंडीगढ़ नगर निगम की बैठक में भी इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई थी, जहां प्रशासन ने स्पष्ट किया था कि इस मामले में अंतिम निर्णय केंद्र सरकार का होगा। 2023 में भी विभिन्न स्थानीय संगठनों ने फ्लैट्स को निवासियों के नाम पर स्थानांतरित करने की मांग की थी। लेकिन अब केंद्र सरकार के इस स्पष्ट जवाब के बाद इन परिवारों को मालिकाना हक पाने की उम्मीदें समाप्त हो गई हैं।