- by Vinita Kohli
- Nov, 04, 2025 10:54
चंडीगढ़: हरियाणा के ऊर्जा, परिवहन एवं श्रम मंत्री अनिल विज ने कहा कि ‘‘अरावली पर्वत श्रृंखला विश्व की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है और इसके संरक्षण के लिए केंद्र सरकार द्वारा लिया गया निर्णय सराहनीय है। उन्होंने कहा कि अरावली क्षेत्र में नए खनन पट्टे न दिए जाने के केंद्र सरकार के फैसले का वे स्वागत करते हैं और पर्यावरणविदों व प्रकृति प्रेमियों को भी इस निर्णय का स्वागत करना चाहिए’’। इसके अलावा, विज ने कहा कि ‘इतिहास में बहुत बडी-बडी गलतियां हो रखी है इसलिए बंग्लादेश में हिन्दूओं पर हो रहे अत्याचारों को गंभीरता से विचार करना चाहिए’ क्योंकिः-‘‘खता लम्हों ने की, सजा सदियों ने पाई’’। विज आज मीडिया कर्मियों द्वारा अरावली पर्वत श्रृंखला में खनन को लेकर पूछे गए सवालों का उत्तर दे रहे थे। उल्लेखनीय है कि अरावली पर्वतमाला की पुनर्परिभाषा को लेकर हुए विवाद के बाद, केंद्र सरकार ने गत दिवस राज्यों को निर्देश जारी कर पर्वत श्रृंखला के भीतर नए खनन पट्टे देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने को कहा है।
पर्यावरण व वन मंत्रालय ने भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद को पूरे अरावली क्षेत्र में अतिरिक्त क्षेत्रों और जोन की पहचान करने का निर्देश दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि हाल ही में माननीय उच्चतम न्यायालय के एक आदेश के बाद लोगों में यह भ्रांति फैल गई थी कि इससे बड़े पैमाने पर खनन होगा और अरावली पर्वतों को भारी नुकसान पहुंचेगा। लेकिन केंद्र सरकार ने इस विषय पर संज्ञान लेते हुए स्पष्ट आदेश जारी कर दिया है कि अब अरावली क्षेत्र में किसी भी प्रकार का नया खनन पट्टा नहीं दिया जाएगा। साथ ही, पहले से दिए गए खनन पट्टों की भी समीक्षा और पुनर्विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि लगभग 600 किलोमीटर लंबी अरावली पर्वत श्रृंखला दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक फैली हुई है और इसका संरक्षण पर्यावरणीय संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
इस दृष्टि से केंद्र सरकार का यह निर्णय अरावली को बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। विपक्ष द्वारा इस पूरे मामले में सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए जाने के संबंध में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में विज ने कहा कि माननीय न्यायालय के निर्णय को सरकार की भूमिका से जोड़ना न्यायपालिका का अपमान करने के समान है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय न्यायालय का है, न कि सरकार का। विपक्ष न तो फैसले को ठीक से पढ़ता है और न ही तथ्यों को समझता है। उन्होंने दोहराया कि केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए स्पष्ट आदेश का वे स्वागत करते हैं और पर्यावरण से जुड़े सभी लोगों को भी इसका स्वागत करना चाहिए।
इस अवसर पर विज ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के मुद्दे पर भी गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इस विषय पर अत्यंत गंभीरता से विचार किए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि बांग्लादेश के निर्माण में भारत की निर्णायक भूमिका रही है। उन्होंने बताया कि वर्ष 1971 के युद्ध के बाद बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बना और उस समय देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थीं। विज ने कहा कि सत्ता परिवर्तन के बाद बांग्लादेश में जिस प्रकार की घटनाएं सामने आ रही हैं, उससे यह प्रतीत होता है कि पहले भारत के लिए केवल पाकिस्तान ही चुनौती था, लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं और बांग्लादेश भी एक नई चुनौती के रूप में उभरता दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा कि इतिहास में कई बड़ी राजनीतिक भूलें हुई हैं, जिनका खामियाजा आज भी देश भुगत रहा है।
उन्होंने स्मरण कराया कि 1971 के युद्ध के दौरान भारत के पास लगभग 90 हजार पाकिस्तानी युद्धबंदी थे और उस समय भारत के पास कई रणनीतिक विकल्प मौजूद थे। यदि उस समय राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई जाती, तो भारत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को वापस ले सकता था। लेकिन उस अवसर का उपयोग नहीं किया गया और युद्धबंदियों को वापस कर दिया गया, जबकि पीओके का मुद्दा आज भी यथावत बना हुआ है। इसी प्रकार, उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय दबाव और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारत ने बांग्लादेश पर नियंत्रण स्थापित करने का विकल्प भी नहीं अपनाया। उन्होंने यह भी कहा कि बांग्लादेश का एक भू-भाग ऐसा है, जो चीन के काफी नजदीक स्थित है और रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि उस समय इस पहलू पर गंभीरता से विचार किया जाता, तो आज परिस्थितियां भिन्न हो सकती थीं।