- by Vinita Kohli
- Nov, 01, 2025 04:35
चंडीगढ़: चंडीगढ़ में होने वाले मेयर चुनाव से पहले राजनीतिक माहौल तेजी से बदलता नजर आ रहा है। आम आदमी पार्टी को उस समय बड़ा झटका लगा, जब उसके दो पार्षद सुमन देवी और पूनम देवी ने पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। यह घटनाक्रम ऐसे वक्त पर हुआ है, जब जनवरी में नगर निगम का मेयर चुना जाना है और हर एक वोट बेहद अहम हो गया है। चर्चा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पंचकुला दौरे के दौरान इन पार्षदों की उनसे मुलाकात करवाई जा सकती है, जिससे यह संकेत मिलता है कि यह बदलाव केवल स्थानीय स्तर तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे राष्ट्रीय नेतृत्व की भी सक्रिय भूमिका मानी जा रही है।
दरअसल, भारतीय जनता पार्टी की पूरी कोशिश है कि वह एक बार फिर चंडीगढ़ नगर निगम में मेयर पद पर कब्जा जमाए। इसी रणनीति के तहत पार्टी अपने संख्याबल को मजबूत करने में जुटी हुई है। AAP के दो पार्षदों के भाजपा में शामिल होने से निगम की राजनीतिक गणित पूरी तरह बदल गई है और भाजपा अब बहुमत के बेहद करीब पहुंच गई है। चंडीगढ़ नगर निगम में कुल 35 निर्वाचित पार्षद हैं और मेयर चुनाव में चंडीगढ़ के सांसद का वोट भी मान्य होता है, जिससे कुल वोटों की संख्या 36 हो जाती है। इसके अलावा नौ नामित पार्षद भी होते हैं, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं है।
पहले की स्थिति में भाजपा के पास 16 वोट थे, जबकि आम आदमी पार्टी के पास 13 वोट और कांग्रेस के पास 6 वोट थे। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी के एक वोट को जोड़ने पर कांग्रेस की कुल ताकत 7 वोट की बनती थी। हालांकि, अब AAP के दो पार्षदों के पार्टी छोड़ने के बाद भाजपा के वोट बढ़कर 18 हो गए हैं और AAP की संख्या घटकर 11 रह गई है। मेयर बनने के लिए 19 वोटों की जरूरत होती है और मौजूदा हालात में भाजपा सिर्फ एक वोट से दूर है। ऐसे में कांग्रेस की भूमिका काफी अहम हो गई है, क्योंकि उसके पास मौजूद वोट किसी भी पक्ष के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं। कुल मिलाकर, चंडीगढ़ का मेयर चुनाव अब केवल औपचारिक प्रक्रिया नहीं रह गया है, बल्कि यह राजनीतिक रणनीति, जोड़तोड़ और शक्ति संतुलन की एक दिलचस्प लड़ाई बन चुका है, जिस पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं।