- by Tanya Chand
- Jan, 06, 2025 07:29
भाई दूज 2025: हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण और पावन त्योहार है, जो दिवाली के पांचवें और अंतिम दिन बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार भाई और बहन के रिश्ते को समर्पित होता है और इसे भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कहीं इसे भाऊ बीज, भाई दूज, भात्र द्वितीया, भाई द्वितीया एवं भतरु द्वितीया कहा जाता है। लेकिन सभी स्थानों पर इसकी भावना और उद्देश्य एक ही होता है—भाई-बहन के अटूट प्रेम को सम्मान देना।
2025 में भाई दूज
यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष भाई दूज का पर्व 23 अक्टूबर, गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन बहनें प्रातः स्नान कर व्रत रखती हैं और पूजा की तैयारी करती हैं। शुभ मुहूर्त में भाई को तिलक लगाकर पूजा करती है और फिर दोनों एक साथ भोजन करते हैं।
भाई दूज का पौराणिक महत्व
भाई दूज से जुड़ी एक प्रमुख कथा के अनुसार, मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने कार्तिक मास की शुक्ल द्वितीया को उनके घर पहुँचे थे। यमुनाजी ने अपने भाई का स्वागत तिलक करके किया, उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराया और उनकी दीर्घायु की कामना की। यमराज इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने बहन से वर मांगने को कहा। यमुनाजी ने इच्छा प्रकट की कि हर साल वह अपने भाई से मिलें और यह परंपरा दुनिया भर के भाई-बहनों में भी बनी रहे। तभी से यह मान्यता चली आ रही है कि इस दिन बहन अगर अपने भाई को तिलक लगाकर भोजन कराए, तो भाई की आयु लंबी होती है और उसे यम के भय से मुक्ति मिलती है।
भाई दूज की परंपराएँ
भाई दूज के दिन बहनें अपने भाइयों को घर आमंत्रित करती हैं या स्वयं उनके घर जाती हैं। इस दिन का सबसे विशेष और भावनात्मक क्षण होता है जब बहनें भाइयों के माथे पर रोली, चावल और फूलों से तिलक लगाती हैं। यह तिलक केवल एक रस्म नहीं, बल्कि बहन की अपने भाई के प्रति प्रार्थना और आशीर्वाद का प्रतीक होता है। इसके बाद बहनें अपने हाथों से बनाए गए पकवान, मिठाइयाँ या विशेष भोजन भाइयों को परोसती हैं। भाई इस अवसर पर अपनी बहनों को उपहार देते हैं, जो स्नेह, कृतज्ञता और उनकी रक्षा करने के संकल्प का प्रतीक होता है। यह उपहार भले ही वस्तु के रूप में हो, लेकिन इसका वास्तविक अर्थ बहन की भावनाओं और रिश्ते की अहमियत को सम्मान देना होता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
भाई दूज सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की उन मूलभूत भावनाओं को दर्शाता है जो पारिवारिक एकता, प्रेम और सम्मान पर आधारित हैं। यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि रिश्ते सिर्फ खून के नहीं होते, बल्कि उन्हें निभाने से उनका मूल्य बढ़ता है। आज के समय में जब पारिवारिक संबंधों में दूरी और व्यस्तता बढ़ रही है, ऐसे में भाई दूज जैसे त्योहार हमें आपसी संबंधों को फिर से सहेजने और उन्हें समय देने का अवसर प्रदान करते हैं। यह पर्व एक ऐसा अवसर है, जब भाई-बहन अपने बचपन की यादों में लौटते हैं, हँसी-मज़ाक करते हैं और जीवन की आपाधापी से अलग कुछ पल एक-दूसरे के साथ बिताते हैं।
आधुनिक समय में भाई दूज
हालांकि समय के साथ भाई दूज मनाने के तरीके बदलते जा रहे हैं, पर इसका मूल भाव आज भी उतना ही मजबूत है। अब लोग वीडियो कॉल के माध्यम से तिलक की रस्म निभाते हैं, उपहार ऑनलाइन भेजते हैं, लेकिन भावना वही रहती है। विशेष रूप से उन परिवारों के लिए जो भौगोलिक रूप से दूर हैं, यह पर्व एक भावनात्मक सेतु की तरह काम करता है।