- by Vinita Kohli
- Nov, 01, 2025 04:35
चंडीगढ़: पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) में बुधवार को "फैकल्टी अवेयरनेस वर्कशॉप" का आयोजन किया गया, जिसमें शिक्षकों और शोधार्थियों को जिम्मेदार प्रकाशन (रिस्पॉन्सिबल पब्लिशिंग) और वैश्विक शोध दृश्यता (ग्लोबल रिसर्च विज़िबिलिटी) के महत्व पर जागरूक किया गया। इस पहल का उद्देश्य अधिक से अधिक वैज्ञानिकों को “स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की विश्व के शीर्ष 2% वैज्ञानिकों की सूची” और स्कोपस इंडेक्स्ड जर्नल्स में प्रकाशन हेतु मार्गदर्शन प्रदान करना था। कार्यक्रम की शुरुआत पीयू के अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ (आरडीसी) की निदेशक प्रो. मीनाक्षी गोयल के उद्घाटन भाषण से हुई। उन्होंने वैश्विक शोध वातावरण में लेखक पहचान प्रबंधन, सटीक सिटेशन ट्रैकिंग और नैतिक प्रकाशन पद्धतियों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि वाइस चांसलर प्रो. रेनू विग के नेतृत्व में यूनिवर्सिटी ने शोध ईमानदारी, डेटा सटीकता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की संस्कृति को सशक्त किया है।
पंजाब यूनिवर्सिटी 2019 से लगातार स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की “ग्लोबल टॉप 2% साइंटिस्ट्स लिस्ट” में स्थान बना रही है, जिसमें 2025 संस्करण में 51 वैज्ञानिकों को स्थान मिला है। तकनीकी सत्रों में पीयू के डीन, इंटरनेशनल स्टूडेंट्स प्रो. केवल कृष्णन ने “स्टैनफोर्ड टॉप 2% साइंटिस्ट रैंकिंग में पंजाब यूनिवर्सिटी” और “स्कोपस डेटाबेस फॉर रिसर्च विजिबिलिटी” विषय पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मान्यता के प्रभाव और लेखक प्रोफाइल सुदृढ़ करने के तरीकों पर प्रकाश डाला। एसी जोशी लाइब्रेरी के डिप्टी लाइब्रेरियन डॉ. नीरज कुमार सिंह ने “स्टैनफोर्ड रैंकिंग की प्रमुख मीट्रिक्स और कार्यप्रणाली” तथा “स्कोपस-इंडेक्स्ड जर्नल्स में प्रकाशन” पर प्रेजेंटेशन दी।
उन्होंने एच-इंडेक्स और एचएम-इंडेक्स जैसे प्रमुख सूचकांकों की व्याख्या की और शोधार्थियों को विश्वसनीय जर्नल्स की पहचान करने के तरीकों के बारे में बताया। इस वर्कशॉप में 95 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, जिनमें करीब 75 फैकल्टी सदस्य और शोधार्थी विभिन्न विभागों जैसे मानवविज्ञान, भौतिकी, वनस्पति विज्ञान, रसायन विज्ञान, भूविज्ञान, प्राणीशास्त्र, गणित और कंप्यूटर साइंस से शामिल हुए। सत्रों में सक्रिय चर्चाएं और प्रश्नोत्तर हुए, जो प्रतिभागियों की वैश्विक शोध पहचान को मजबूत करने की उत्सुकता दर्शाते हैं। कार्यक्रम का समापन इस सहमति के साथ हुआ कि शोध प्रभाव को और बढ़ाने के लिए संस्थागत स्तर पर निरंतर पहल की आवश्यकता है।