सरपंच पति, प्रधान पति, प्रमुख पति, महापौर पति या इस तरह के जो नए शब्द डिक्शनरी में ईजाद हुए थे वे सब बीते जमाने की बात होती जा रही है। महिलाएं अब सभी क्षेत्रों में मुखर होती जा रही है। उत्तरप्रदेश के हालिया चुनावों से एक बात साफ हो गई है कि महिलाएं अब पुरुषों की पिछलग्गू होने के स्थान पर निर्णायक भूमिका में आ गई है। मजे की बात यह कि शहरी महिलाओं की तुलना में ग्रामीण महिलाएं दो कदम आगे हैं। माने या ना माने पर इसमेें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि यूपी के चुनावों में महिलाओं ने खास ही नहीं बल्कि निर्णायक भूमिका निभाई है।
उत्तरप्रदेश के चुनावों के मतदान के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो साफ हो जाता है कि महिलाओं ने पुरुषों से अधिक बढ़-चढ़ कर मतदान में हिस्सा लिया। और यह भी मतदान तक ही सीमित नहीं अपितु पुरुषों से इतर मतदान का निर्णय किया। यानी अपनी स्वयं की इच्छा से मनचाहे उम्मीद्वार को मत दिया। महिलाओं ने अपना एजेंडा स्वयं चुना और यही कारण रहा कि सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी के लाख प्रयासों और एंटी इंकमबेंसी के बावजूद बहुमत हासिल करने में सफल हो गया। एक अनुमान के अनुसार 10 में से सात महिलाओं ने पार्टी या विचारधारा के स्थान पर कानून व्यवस्था को महत्व दिया। महिला केंद्रीत योजनाओं को समझा और इसी कारण अधिक मुखर होकर सत्ताधारी पार्टी को विजयी बनाया।
सरपंच पति, प्रधान पति, प्रमुख पति, महापौर पति या इस तरह के जो नए शब्द डिक्शनरी में ईजाद हुए थे वे सब बीते जमाने की बात होती जा रही है। महिलाएं अब सभी क्षेत्रों में मुखर होती जा रही है। प्रियंका गांधी का यूपी में नारा लड़की हूं लड़ सकती हूं महिलाओं में अवेयरनेस जगाने में तो कामयाब रहा पर यह नारा वोट में परिवर्तित नहीं हो सका और इसका लाभ सत्ताधारी पार्टी को मिला। 90 के दशक मेें जब महिलाओं को राजनीति में आरक्षण लाया गया तो उस समय बहुत आलोचना प्रत्यालोचना हुई और यहां तक कि महिलाओं के नाम पर उनके पति या परिवारजन बागड़ोर संभालेंगे। शुरुआती दौर में बहुत कुछ यह सचाई भी रही व पार्षद पति से लेकर प्रमुख पति तक की एक नई जमात बनी पर समय के साथ महिलाएं इतनी परिपक्व हो गई है कि वे अपने फैसले स्वयं करने लगी। शासन की या यों कहें कि जिम्मेदारी की बागड़ोर भी पूरी जिम्मेदारी के संभालने लगी है। यही लोकतंत्र की खूबी है।
कहा जाता है कि दिल्ली के राज या यों कहें कि देश के प्रधानमंत्री की राह उत्तरप्रदेश होकर जाती है तो यह भी साफ हो जातना चाहिए कि यूपी की महिलाओं ने चुनावों में जिस तरह से अधिक मतदान किया है वह अन्य प्रदेशों की महिलाओं के लिए एक मिसाल बन जाती है। यहां कि महिलाओं ने किस पार्टी को अधिक मतदान किया यह मुद्दा नहीं है अपितु यह मुद्दा है कि महिलाएं निर्णय स्वयं लेने लगी है। एक सर्वे के अनुसार 2017 के चुनावों में 47 फीसदी महिलाओं ने अपने परिजनों से पूछ कर मतदान किया वहीं हानिया चुनाव में 15 प्रतिशत कम यानी की 32 फीसदी महिलाओं ने ही परिवारजनों से राय ली। यह बदलाव का संकेत है। इसी तरह से शहरी लोगों चाहे महिला हो या पुरुष अधिक सजग माना जाता है पर ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं ने शहरी महिलाओं की तुलना में अधिक मतदान किया।
हालिया चुनावों में पुरुषों की तुलना में 10 प्रतिशत से भी अधिक महिला मतदान रहा है। महिलाओं द्वारा मतदान के लिए स्वविवेक या यों कहें कि अपना स्वयं का निर्णय करना इस बात का संकेत है कि लोकतंत्र के मायने बदलते जा रहे हैं। इसे यों समझा जा सकता है कि ग्रामीण महिलाओं ने सत्ताधारी दल को विपक्षी पार्टी की तुलना में16 प्रतिशत अधिक मत दिए वहीं शहरी क्षेत्र में यह प्रतिशत 6 फीसदी रहा। एक और खास देखा गया कि बुजुर्ग महिलाओं खासतौर से 55 से अधिक आयुवर्ग की महिलाओं और 18 से 25 आयुवर्ग की महिलाओं ने सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में अधिक मतदान किया।
इससे दो बाते साफ हो जाती है और इसे लोकतंत्र के लिए शुभसंकेत भी माना जा सकता है कि महिलाओं ने जात-पांत से उपर उठकर अपने एजेण्डे पर मतदान किया। कानून व्यवस्था और सीधे महिलाओं को प्रभावित करने वाली योजनाएं मतदान का एजेण्डा बनी। चाहे वह सीधे अनाज का वितरण हो या रसोई गैस या फिर अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही। संदेश चुनाव परिणामों में स्पष्ट परिलक्षित हो गया है। ऐसे में अब राजनीतिक दलों को अपनी चुनाव रणनीति में बदलाव लाना होगा। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप के स्थान पर उन मुद्दों को आगे बढ़ाना होगा जो सीधे सीधे जनमानस को प्रभावित करते हैं।
आम नागरिक की पहली अपेक्षा आज बेहतर कानून व्यवस्था होती जा रही है। अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही के साथ लोगों को दिखना भी चाहिए की सख्त कार्यवाही हो रही है। अब बुलडोजर का विकास का प्रतीक माना जाए या विनाश का पर यूपी के चुनावों में सत्ता पक्ष और विपक्ष ने इसे खूब भुनाया। बुलडोजर सख्ती काप्रतीक बन गया और इसमें कोई दो राय नहीं कि वोट में परिवर्तित होने का एक बड़ा कारण भी बन गया। इस तरह के अनेक कारण रहे।
आधी आबादी का इस तरह से मुखर होना लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत माना जा सकता है तो यह राजनीतिक शुचिता का माध्यम भी बन सकेगा। महिलाओं द्वारा स्वतंत्र निर्णय चुनावों में निष्पक्ष मतदान की पहचान भी बन सकेगा। सबसे अधिक यह कि इससे जाति-धर्म के नाम पर होने वाले मतदानों और वोट बैंक की राजनीति पर देर सबेर और कमोबेस अंकुश लगने की राह प्रशस्त होगी। लोकतंत्र में आधी आबादी के इस निर्णय का दलगत राजनीति से उपर उठकर स्वागत किया जाना चाहिए।