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Friday, April 26, 2024
Editorial

बजट से अर्थव्यवस्था को मिलेगी मजबूती - मयंक मिश्रा

February 07, 2021 07:36 AM

देश भर में फैली कोरोना महामारी के कारण बदहाल हुई अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को लोकसभा में देश का आम बजट पेश कर भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दिए। देश आने वाले वित्तीय वर्ष में तेज आर्थिक रफ्तार पकड़ेगा। निश्चित तौर पर अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। कोरोना वायरस जैसी महामारी के बीच पेश किए गए बजट में निर्मला सीतारमण ने कई महत्वपूर्ण ऐलान किए। देश के इतिहास में यह पहला बजट है जिसकी छपाई नहीं हुई है। बजट 2021 डिजिटल तौर पर टैबलेट के जरिए पेश किया गया है।

अर्थव्यवस्था में तेजी लाने, सरकारी शिकंजा ढीला करने और व्यावसायिक गतिविधियों को बूस्ट करने के लिए इस बार के बजट में आशा के अनुरूप घोषणाएं की गईं हैं। वित्त मंत्री ने साफ कर दिया है कि देश में व्यावसायिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए सरकार हर संभव प्रयास करेगी। दरअसल, ग्लोबल लेवल पर व्यावसायिक ताकत बनने के लिए आर्थिक गतिविधियों को बहुत व्यापक करना जरूरी होता है।  मोदी सरकार के ‘आत्म निर्भर भारत’ के विज़न को पूरा करने के लिए इज़ ऑफ़ डूइंग बिजनेस को ज्यादा से ज्यादा इजी करना जरूरी है।

सरकार चाहती है कि युवा सिर्फ नौकरी के भरोसे न रह कर स्वरोजागर के क्षेत्र में आगे बढ़ें और भारत को ग्लोबल बिजनेस सुपर पावर बनाने में योगदान करें। व्यावसायिक गतिविधियों में बढ़ोतरी के लिए एकल कंपनी के के गठन को बढ़ावा दिया गया है। रजिस्ट्रार ऑफ़ कंपनी में पहले से ही एकल व्यक्ति कंपनी के पंजीकरण का प्रावधान है लेकिन वो बहुत आसान और स्पष्ट नहीं होने से उसका लाभ व्यापक तौर पर उठाया नहीं जा रहा है। भारत में एमएसएमई सेक्टर बहुत व्यापक है।

मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में यही सेक्टर देश को चीन से टक्कर देने में सक्षम बना सकता है। सीतारमण ने स्वास्थ्य सेवा खर्च को दोगुना करने, व्हीकल स्क्रैपिंग पॉलिसी, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विनिवेश और कुछ राज्य के स्वामित्व वाले ऋणदाताओं के विनिवेश का प्रस्ताव रखा है, जिसका लक्ष्य एक ऐसी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना था जो कोरोना वायरस के प्रकोप से काफी नीचे फिसल गई है। सरकार ने इन सभी योजनाओं का ऐलान इकोनॉमिक सुधार को देखकर किया है। टैक्स भरने वाले करदाताओं को इस बार भी बजट में कुछ खास नहीं मिला है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से टैक्स स्लैब में कोई भी बदलाव नहीं किया गया है। ऐसे में मिडिल क्लास को बजट से पहले जितनी भी उम्मीदें थी, वो वैसी की वैसी ही रह गई हैं।

आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि सीतारमण द्वारा पेश किया गया आम बजट एकदम संतुलित एवं विकासोन्मुखी है। यह कोविड-19 महामारी की वजह से पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगा। यह ईज आफ लिविंग को प्रोत्साहित करने वाला बजट है। यही कारण है कि इसमें ढांचागत विकास की ओर से विशेष ध्यान दिया गया है। सबसे खास बात यह है कि सरकार ने इस बजट के माध्यम से किसी क्षेत्र व वर्ग को खुश करने का प्रयास न करते हुए देश को तरक्की की राह पर ले जाने का ठोस और बुद्धिमानी भरा प्रयास किया है।

2020 की शुरुआत में, भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया था। भले ही चीन की चुनौती को नजरअंदाज कर दिया जाए और विनिर्माण क्षेत्र में आयात पर निर्भरता को खत्म कर दिया जाए, लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार किसी भी विकासशील देश के सपने को आत्मनिर्भरता की दिशा में काम कर रही है। पिछले दिनों आरबीआई प्रमुख ने कहा था कि अर्थव्यवस्था महामारी के दौर से निकल रही है और जीडीपी पटरी पर लौटने को है। मंगलवार को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारतीय आर्थिकी का उत्साहजनक आकलन प्रस्तुत किया कि वर्ष  2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 11.5 रहेगी। साथ ही यह भी कि दो अंकों वाली यह दुनिया की एकमात्र अर्थव्यवस्था होगी। यह आकलन कुछ समय पहले 8.8 फीसदी किया गया था। जाहिर है भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर लौट रही है।

निस्संदेह यह आकलन देश की उम्मीद बढ़ाने वाला है लेकिन इसके बावजूद यह प्रगति इस बात पर निर्भर करेगी कि हम महामारी के प्रभाव को दूर करने वाले लक्ष्यों को किस हद तक पूरा कर पाते हैं। यह अच्छी बात कि देश की अर्थव्यवस्था उम्मीद से बेहतर परिणाम देगी, लेकिन जरूरत इस बात की भी है कि उत्साहवर्धक विकास की किरण हर आम आदमी तक भी पहुंचे।

यानी विकास समाज में तेजी से बढ़ रही असमानता की खाई को भी दूर करे। हाल ही में जारी ऑक्सफैम की रिपोर्ट ने बताया था कि कोरोना संकट के दौरान जहां देश के उद्योग धंधे और विभिन्न क्षेत्र रोजगार के संकट से जूझ रहे थे, तमाम लोगों के रोजगार छिने व वेतन में कटौती की गई तो उसी दौरान देश के शीर्ष धनाढ्य वर्ग की आय में पैंतीस फीसदी की वृद्धि हुई जो हमारे विकास की विसंगति को दर्शाता है कि जहां देश का बड़ा तबका लॉकडाउन के दंश झेल रहा था तो एक वर्ग संकट में मालामाल हो रहा था।

गौर करने वाली बात यह है कि महीनों के लिए कई देशों में लॉकडाउन रहा, जिससे आयात-निर्यात भी प्रभावित हुआ। कोरोना वायरस महामारी और उसकी रोकथाम के लिए लगाए गए 'लॉकडाउन' के कारण चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही अप्रैल-जून में अर्थव्यवस्था में 23.9 फीसदी की बड़ी गिरावट आई थी। यह दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट के सबसे ऊंचे आंकड़ों में से है। हालांकि इसके बाद धीरे-धीरे आर्थिक गतिविधियां पटरी पर आने लगीं। लोगों ने आपदा को अवसर में बदला और कुछ क्षेत्रों ने और भी बड़ा बाजार तैयार किया है।

 
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