संक्रांति का अर्थ है सम्यक् दिशा में क्रांति अर्थ योग्य दिशा में चिंतन कर सकारात्मक परिवर्तन से सामाजिक जीवन का उन्नयन करना।पश्चिम संस्कृति के इतिहास में क्रांति का अर्थ केवल रक्तपात लूटपाट आदि से है परन्तु सनातन संस्कृति के इतिहास में क्रांति का अर्थ सामाजिक उन्नति के लिए विभिन्न कालखंडों में माँ भारती के वीर सपूतों द्वारा किए गए प्रगति कार्य से हैं, जिसमें महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी,पृथ्वीराज चौहान, बप्पा रावल, गुरु गोबिंद सिंह, विवेकानंद, दयानंद सरस्वती, सुभाष चन्द्र बोस, और अनगिनत व्यक्तित्व शामिल हैं जिन्होंने अपने स्वार्थ को त्याग सामाजिक विषमताओं को दूर कर सामाजिक उद्धार का कार्य किया।समाज में क्रांति सैद्धांतिक विचार से उत्पन्न होकर, विचार की पूर्णता की योजना बना कार्य पद्धति द्वारा लक्ष्य प्राप्ति से होती है।
सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और मानसिक आधार पर विचारात्मक मंथन का परिणाम ही परिवर्तन की दिशा निर्धारित करता है। ऐसे ही परिवर्तन की संरचनात्मक स्थितिइतिहास की कई क्रांतियों में देखी जा सकती हैजिसमें धर्मनिरपेक्षता और बंधुत्व के लिए फ्रांसीसी क्रांति, स्वाधीनता की प्राप्ति के लिए भारत की अंग्रेजों विरुद्ध की गई क्रांति, कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए हरित क्रांति आदि शामिल हैं।
पाश्चात्य देशों द्वारा किया गया वैचारिक मंथन जो समाजवाद (वामपंथ) और पूँजीवाद को जन्म देता है।अमेरिका और रशिया जैसे देशों के लिए आपसी रंजिश का कारण बना, परन्तु उपरोक्त विचारधारा द्वारा संबंधित देशोंनेऐसीविषैली विचारधारा को त्यागकर सामाजिक प्रगति के लिए विचारात्मक परिवर्तन करना आरंभ किया।परंतु आजादी के समय गुटनिरपेक्षता की विचार पर अपनी तीसरी दुनिया में रहने वाला भारत देश सनातन संस्कृति के विचारात्मक चिंतन के कारण प्रगति के रास्ते पर सवार हुआ।वसुधैव कुटुंबकम के सांसारिक विचार द्वारा भारत को समृद्धि में सशक्त मार्ग प्राप्त हुआ।
परन्तुराजनीतिक दशा और सामाजिक परिस्थितियों के अधीन कई संगठनों और मज़हबो द्वारा भारत का काफी नुकसान किया गया। विचारात्मक क्रांति द्वारा सत्ता का राष्ट्रवादी परिवर्तन ऐसे घिनौनी संगठनों और मज़हबों पर अंकुश का कार्य सिद्ध होगा, जो धर्मांतरण, लव जिहाद, सांप्रदायिक राजनीति जैसे खेल रचकर सामाजिक समरसता को खंडित कर रहे है।
मकर संक्रांति के दिन जब भगवान सूर्य नारायण उत्तरायण कक्ष में स्थापित होंगे,भारतीय देसी महीनों के मुताबिक माघ माह के शुरुआत में भारतीय समाज को उन सभी राष्ट्र विरोधी पक्षों के विरुद्ध क्रांति का आह्वान करना चाहिए जो भारत की प्रगति में पत्थर बने हुए हैं। इस विचार सेसमाज मैं राष्ट्रवाद की भावना जागृत कर ऐसा सामाजिक परिवर्तन करना चाहिए जो किसी भी आंतरिक चुनौतियों में आपसी बंधुत्व के साथ खड़े रहकर सभीप्रकारकीचुनौतियों का सामना करतेहुएसुरक्षितसमाजकानिर्माणकरसके।
अंत में सामाजिक समरसता,उन्नयन और शांति की कामना करते हुए एक श्लोक द्वारा अपना लेख समाप्त करता हूँ-
सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।